परिकल्पना
'हिंदी से प्यार है' की परिकल्पना अमेरिका में पिछले ३० वर्ष से रहने वाले ‘हिंदी प्रेमी’ अनूप भार्गव ने कोविड की त्रासदी के दौरान सन 2020 में की । उद्देश्य यह था कि हिंदी में जो बहुत सारे काम अधूरे पड़े हैं या हुए ही नहीं हैं उनमें से कुछ कामों को सरकारी संस्थाओं पर आधारित रहने के बजाय स्वयंसेवी आधार पर हाथ में लिया जाए और एक-एक कर पूरा करने का प्रयास किया जाए। इसके लिए एक व्हाट्सएप्प समूह बनाया गया और फ़ेसबुक पर पेज़ बनाया गया ।

गूगल फ़ॉर्म के द्वारा हिंदी प्रेमियों को जुड़ने का निमंत्रण भेजा गया। धीरे-धीरे दुनिया के कई देशों से हिंदी प्रेमी जुटने लगे और इस समूह की परियोजनाओं को पूरा करने का सिलसिला शुरू हो गया। हालाँकि यह सिलसिला लंबा और स्थायी है किंतु पिछले कुछ महीनों में जितना कुछ काम हिंदी के समर्पित स्वयंसेवकों ने कर दिखाया है, वह बहुत उम्मीद जगाता है।

किसी संस्था में काम तय किये जाते हैं और फिर उन कामों को करने के लिए लोगों का चुनाव किया जाता है..... किसी आंदोलन में स्वयंसेवक ही यह तय करते हैं कि वे कौन-सा काम करेंगे और अन्य लोग उन्हें उनकी मंज़िल तक पहुंचने में मदद करते हैं। ‘हिंदी से प्यार है’ एक ऐसा ही आंदोलन है।


हमारा मानना है कि :
  • भारत में और भारत से बाहर हिन्दी से प्रेम करने वालों की संख्या सिर्फ हजारों में नहीं लाखों में है।
  • इन में से बहुत से प्रेमी नि:स्वार्थ भावना से हिंदी के लिए कुछ करने को तैयार हैं।
  • जरूरत है उन्हें एक प्लेटफॉर्म देने की, उन की ऊर्जा को दिशा देने की।
  • “हिंदी से प्यार है’ एक ऐसा ही मंच है।
‘हिंदी से प्यार है’ मंच पर
  • सदस्यता के लिए पहली (और शायद एकमात्र ) शर्त आप का ‘हिंदी से प्रेम‘ होना है।
  • (हम यह मान कर चल रहे हैं कि ‘प्रेम’ के साथ उस के लिए प्रतिबद्धता और जिम्मेदारी अपने आप शामिल हो जाती है) आप का विद्वान होना जरूरी नहीं है।
  • हमें खुशी है कि हमारे साथ हिंदी के बहुत से विद्वान जुड़े हैं और हम उनके अनुभव और मार्ग दर्शन का लाभ उठायेंगे लेकिन वह इस समूह से इसलिए जुड़े हैं कि वह विद्वान होने के साथ साथ ‘हिंदी से प्रेम’ भी करते हैं और उस के विकास के लिए अपना कुछ समय देने को तैयार हैं। हम उनके आभारी हैं।
हम क्या हैं
  • किसी भी कार्य को करने से पहले उस के पीछे ‘वैचारिक पृष्ठभूमि’ की स्पष्टता भी जरूरी है, लेकिन यह समूह ‘वैचारिक विमर्श या उस से उत्पन्न वाद-विवाद के लिए नहीं बना है।
  • बहुत से छोटे छोटे काम ऐसे हैं जिन के पीछे कोई विवाद हो ही नहीं सकता और उनकी उपयोगिता में भी संदेह नहीं है।
  • ऐसे बहुत से काम हैं जो होने चाहिए, लेकिन हो नहीं पा रहे हैं।
  • यह समूह उन कार्यों को बिना किसी शोर किए मूर्त रूप देने के लिए बना है।
और हम क्या नहीं हैं
  • हम सरकार और सरकारी संस्थाओं को क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए पर चर्चा करने की बजाय, हम क्या कर सकते हैं पर अधिक ध्यान देंगे।
  • जरूरत पड़ने पर हम सरकारी संस्थाओं के पास भी जाएंगे लेकिन उनपर पूर्णत: निर्भर नहीं रहेंगे।
  • हम किसी के भी द्वारा सुझाई गई परियोजना पर विचार करेंगे।
  • यदि परियोजना हमें उपयुक्त लगती है तो हम उस के क्रियान्वयन में सहयोग देंगे।
  • प्रयास यही है कि अधिकांश कार्य स्वयं हमारे प्रयासों से संभव हो सकें।
कैसी परियोजनाओं के सुझाव दिए जा सकते हैं?
  • ये परियोजनाएँ सिर्फ सैद्धांतिक नहीं हो (यह होना चाहिए या उन्हें यह करना चाहिए कि बजाय उस में स्पष्ट कदम हो कि हम यह करेंगे)
  • सुझाए गए कदमों में स्पष्टता हो।
  • उन के परिणाम नापने की विधि हो।
  • यदि सब कार्य हम नहीं कर सकते तो हमें किन-किन साधनों और संस्थाओं की जरूरत होगी – इस में स्पष्टता हो।
 
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